विश्व चैंपियन बनकर भारत का गुकेश ने वह कर दिखाया जो इसके पहले दुनिया में किसी ने भी नहीं किया था

डोम्माराजू गुकेश विश्व चैंपियन बनकर देश को ऐसी शानदार उपलब्धि पहले किसी ने भारतीय खिलाड़ी ने ऐसा खिताब  भारत  को  नहीं दिलाया है ,जो इन्होंने केवल महज  18 साल की उम्र में कर दिखाया। गुकेश ने वर्ल्ड चेस चैंपियन बनकर इतिहास रच दिया। गुकेश की यह उपलब्धि भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण और



अद्भुत है क्योंकि विश्वनाथन आनंद जब विश्व चैंपियन बने थे तो उनका उम्र  केवल  31 साल था और गुकेश ने जब यह उपलब्धि पायी तो  उनका  उम्र केवल  18 साल ही हैं। आनंद ने अपना खिताब जब  2013 में गंवाया था तब गुकेश ने शतरंज को खेलना शुरू ही किया था। गुकेश  2019 में ही  12 साल  7 महीने की उम्र में दूसरे सबसे युवा


ग्रैंडमास्टर बन चुके थे। और इसके साथ ही केवल 4 साल के अंदर गुकेश विश्व चैंपियन बनकर रिकॉर्ड बना दिए। यह रिकॉर्ड किसी चमत्कार से कम नहीं था। गुकेश ने ग्रैंड मास्टर बनने से पहले ही कह दिया था कि मैं देश का सबसे कम उम्र का शतरंज विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं। और आखिरकार सिंगापुर में उन्होंने अपने बचपन के


सपने को साकार कर ही डाला। गुकेश वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए उन्होंने न केवल सपने ही देखे थे बल्कि उनको पूरा करने के लिए दिन-रात प्रयत्न भी किए थे। गुकेश को वर्ल्ड चैंपियन बनने में उनके माता-पिता का भी जबरदस्त योगदान रहा है। गुकेश के पिता पेशे से डॉक्टर थे। गुकेश के पिता ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के हर संभव


प्रयास किए। किसी कारणवश डॉक्टर पिता ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए एक दिन नौकरी तक छोड़ दी थी। गुकेश की सफलता का महत्व इसलिए भी कई गुना ज्यादा अधिक है क्योंकि उनके पहले पूरे दुनिया में कोई भी इतने कम उम्र में शतरंज का वर्ल्ड चैंपियन नहीं बना है । गुकेश के पहले गैरी कास्पारोव रोव शतरंज के 


युवा वर्ल्ड चेस चैंपियन थे। गैरी की उम्र 22 साल की थी जब वह विश्व चैंपियन बने थे । गुकेश ने रिकॉर्ड बना दिया है। और यही वजह है कि गुकेश की गिनती सबसे कम उम्र में इतना बड़ा करिश्मा करने वाले दुनिया भर के दूसरे खिलाड़ियों से की जा रही है।गुकेश की यह कामयाबी ओलंपिक में जेवलीन थ्रो में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक के 


जीतने बराबर अगर बोला जाए तो यह गलत नहीं होगा।आपको बता दे की जेवलीन थ्रो चेस के मुकाबले बहुत ही कम देश में प्रसिद्ध है।इतनी छोटी सी उम्र में बड़ी कामयाबी हासिल करने वाले को गुकेश को पुरस्कार के रूप में  1.35 मिलियन डॉलर यानी करीब  11. 45 करोड रुपए दिए जाएंगे। सिंगापुर में होने वाली इस वर्ल्ड चेस 


चैंपियनशिप के लिए कुल पुरस्कार राशि  2.5 मिलियन डॉलर यानी  21.2 करोड रुपए की थी । और इस भारी भरकम राशि से यह साबित होता है कि शतरंज खेल की लोकप्रियता कितनी ज्यादा है। भारत और विशेष रूप से उत्तर भारत में शतरंज भले ही उतना प्रसिद्ध खेल ना हो लेकिन यह गेम दुनिया में फुटबॉल के बाद दूसरा सबसे 


ज्यादा लोकप्रिय खेल माना जाता है।शतरंज को करीब 200 देश में खेला जाता है। अब भारत में भी  मुकेश के सफलता की एक बड़ी कहानी बन चुकी है तो शायद यह भी हो सकता है कि देश में इस खेल की लोकप्रियता बढ़ाने के संभावना बन सकते हैं।किसी को भी सफलता की कहानी और खासकर बच्चों और युवाओं को प्रेरणा देती है।


ऐसा कहा जाता है की शतरंज का शुरुआत भारत जैसे देश में ही हुआ था। हाल के ही समय में मुकेश,अर्जुन एरिगेसी, पी. हरिकृष्ण आदि ने यह दिखाया है की शतरंज फिर से भारत में अपना जड़े जमा रहा है।इसकी पुष्टि तब हुई जब भारत ने हाल में शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीत कर दिखाया था। 18 साल के गुकेश ने 32 साल के 


चीनी खिलाड़ी को हराकर यह कामयाबी हासिल की। हालांकि गुकेश अपना पहला मुकाबला हार चुके थे। लेकिन तीसरी बाजी में वह अपने नाम करने में और भारत देश का झंडा गाड़ने में सफल रहे। इसके बाद दोनों खिलाड़ी ने सात मुकाबला ड्रॉ मैच खेले थे। फिर 11वां मुकाबला गुकेश के नाम हुआ। इसके बाद 12वां मुकाबला चीनी 


खिलाड़ी ने जीत लिया था। 13वीं मुकाबला फिर से ड्रॉ रही। और आखिरकार अंत में 14वीं मुकाबला गुकेश ने जीत कर यह खिताब अपने नाम कर ही लिया और देश का नाम रौशन कर डाला।और यदि यह बाजी भी ड्रा रहती तो जीत का फैसला ट्राईब्रेकर से कर लिया जाता। बेस्ट ऑफ़ 14 फार्मेट में जीत हासिल करने वाले गुकेश तीसरी 


चैंपियन रहे हैं। गुकेश के पहले डिंग लिरेन और मैग्नस कार्लसन भी ऐसा कर चुके हैं। दोनों चैंपियन के बीच कांटे की टक्कर ने यह कर दिखाया है कि चीनी खिलाड़ी को भी कम नहीं आंका जा सकता है।शतरंज एक ऐसा खेल है जिसमें धैर्य मानसिक संतुलन बनाए रखना होता है। गुकेश ने यह कर दिखाया कि इतनी कम उम्र में वह मानसिक 


रूप से कई गुना ज्यादा अधिक मजबूत है। और यही मजबूती उनकी सफलता का कारण भी बनी। गुकेश कहते हैं उनकी सफलता के पीछे उनकी खुद की लगन और मेहनत तो रही ही है। उनकी टीम का भी फुल सपोर्ट रहा है। भारत के पूर्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद भले ही उनके टीम में न हो, लेकिन वह अन्य भारतीय शतरंज खिलाड़ियों 


की तरह उनके भी प्रेरणास्रोत कहानियां रही है। गुकेश विश्वनाथन आनंद की चेस अकादमी वेस्टब्रिज का हिस्सा रहे हैं और शतरंज में गुकेश से विश्वनाथन आनंद से कई ज्ञान सीखने को मिले हैं।आपको बता दे की विश्वनाथन आनंद की कामयाबी ने भारत में कई ऐसे खिलाड़ियों को शतरंज में कुछ कर दिखाने के लिए प्रेरित किया था ठीक वैसे ही 


यह काम अब गुकेश भी करने वाले हैं और शायद कहीं अधिक प्रभावी ढंग से भी, क्योंकि उन्होंने वह जीत हासिल किया जो पहले किसी खिलाड़ी ने भी दुनिया में ऐसे पहले जीत हासिल नहीं किया है।मुकेश ने अपनी हुनर का परिचय बचपन में ही दे दिया था, लेकिन उनके जीवन में भी काफी उतार चढ़ाव रहा। मुकेश चीनी खिलाड़ी को 


हराने में इसलिए भी सफल रहे क्योंकि वह वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप का टोरंटो में आयोजित आखिरी चेस्ट टूर्नामेंट कैंडीडेट्स जितने में सफल रह चुके थे। पिछले साल भी दिसंबर में चेन्नई में सुपर ग्रैंड मास्टर टूर्नामेंट आयोजित किया गया था। यह टूर्नामेंट ही गुकेश को टोरंटो तक ले जाने में सहायक बना था। शतरंज के दुनिया में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट आयोजित होते रहे।


भारत के प्रधानमंत्री ने भी  गुकेश के जीत पर बधाई दी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुकेश के जीत पर बधाई दी और तारीफों के पुल बांध दिए। प्रधानमंत्री ने इस उपलब्धि को ऐतिहासिक और अनुकरणीय बताया है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि उनकी अद्वितीय प्रतिभा, कड़ी 


मेहनत और अटूट दृढ़ संकल्प का परिणाम है। उनकी यह जीत न केवल शतरंज के इतिहास में दर्ज हुआ है बल्कि लाखों करोड़ों युवाओं प्रतिभाओं को बड़े सपने देखने और उत्कृष्टा हासिल करने के लिए प्रेरित भी किया है।उनका भविष्य के प्रयासों के लिए मेरी शुभकामनाएं।

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