बहुत सारे लोगो के मन मे ये जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। आखिर में भगवान है तो कहा है और सामने आते क्यों नही। और अगर नही है तो हम मानते क्यों है। और अगर वही हम आस्तिक की पहलू से से बात करे तो उनके अनुसार भगवान ना कोई देख सकते है और ना सामने आ सकते है उनको बस महसूस किया जा सकता है अगर आप सच्चे मन से उनको पुकारो तो |
भगवान को किसी ने भी नही देखा है। पर उनके ग्रंथ, गीता में उनका उल्लेख किया गया है। और उसी हिसाब से भी उनकी तस्वीर और मूर्तियां का रूप दिया गया है। आपके बता दे कि इस धरती पे कुछ ऐसे भी भगवान है जिससे लोगो ने देखने का दावा भी करते है। और उनको अपने नेक कर्मो से उन्हें भगवान का रूप दिया
आज हम आपको इस लेख में आसित्क,नास्तिक और साइंस क्या कहती है हम तीनों पहलुओं से बारी बारी से समझने की कोशिश करेंगे की इनके अनुसार क्या मत है
1. आस्तिक के दृष्टिकोण से
अगर हम आस्तिक के दृष्टिकोण से बात करे तो आपके बता दे कि हमारे दुनिया मे एक धर्म ही नही बल्कि बहुत सारे धर्मो का अस्तित्व है जिस दुनिया मे जाओ वहा के लोगो के अपने अपने धर्मो के भगवान के होने के प्रमाण होते है। हर धर्म में धार्मिक परंपराओं और धार्मिक ग्रन्थों में भगवान के होने का सबूत है
2. हिंदू धर्म के अनुसार
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान को अनंत और सर्वपरी माना गया है।वदों और उपनिषद में भगवान को ब्रम्हा के निराकार और निर्गुण बताया गया है।भगवान विष्णु, शिव और ब्रम्हा आदि देवताओं के अलग अलग रूप में पूजा किया जाता है पर आपको बता के इस धरती पे ऐसी बहुत से सबूत है जो भगवान के होने के दावा करती है
3. इस्लाम धर्म
वही अगर हम इस्लाम धर्म के दृष्टिकोण से बात करे तो इस्लाम मे ईश्वर को अल्लाह से संबोधित किया जाता है। इस्लाम का मुख्य आधार "तोहिद" है जो की ये मानता है की अल्लाह एक है। और उनका कोई रूप कोई साथी नही है। इस्लामिक धर्मो के अनुसार कुरान मे कहा गया है कि आल्हा से दुनिया को बनया है
4. ईसाई धर्म
ईसाई धर्म की दृष्टि से बात करे तो इनके धर्म मे ईश्वर की एक द्यालु और न्यायप्रिय पिता के रूप मे माना जाता है।
बाइबल के अनुसार ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है और मानवता का मार्गदर्शन करने के लिए अपने पुत्र यीशु मसीह को धरती पे भेजा था। आपके बता दें कि ईसाई धर्म मे मुख्य संदेश प्रेम और दया का भाव रखना होता
5. सिख धर्म
सिख धर्म का मानना है कि ईश्वर एक ही है और उसे वाहेगुरु कहा जाता है। इनका मानना है कि ईश्वर एकता के रूप में और पूरी सृष्टि में व्याप्त है। ईश्वर अकाल और निरंकार
6. बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म मे ईश्वर के आधार होने का स्पष्ट रूप से कोई भी प्रमाण नही दिया गया है। बौद्ध धर्म मे मुख्य रूप से आत्मज्ञान, कर्म और तार्किक विद्या होने सिद्धांत है। हालांकि, बौद्ध ने किसी शक्ति होने का उल्लेख तो नही किया है पर जीवन के माया और दुखो से मुक्ति पाने का मार्ग बताया है
7. दार्शनिक दृष्टिकोण से
ईश्वर को लेकर कर के दार्शनिक विचारधाराएं से भी बहुत अलग है। कुछ दार्शनिकसस्त्रियो का मानना है की भगवान का अशिस्त्व हमरे ज्ञान से परे है । हमे भगवान के अस्तित्व को समझने की क्षमता इंसानों मे नही है। और वही दूसरी तरफ देखा जाए तो कुछ दार्शनिको का कहना है कि ईश्वर का अस्तित्व धरती पे है ही नही।प्राचीन भारतीय दार्शनिक परंपरा में उपनिषदों और वेदांत दर्शन में भगवान को 'ब्रह्म' के रूप में जाना जाता है।
8. नास्तिक और उनके दृष्टिकोण
ये एक ऐसे समुदाय से है जो भगवान के अस्तित्व को अस्वीकार करते है। इनका मानना है कि दुनिया और जीवन को समझने के लिए कोई सकती की जरूर नही होती है। कार्ल मार्क्स, फ्रेडिक नित्से, स्टीफन हॉकिंग जैसे महान लोगों ने भगवान होने के अस्तित्व के होने पे सवाल खड़ा किया है। इनका मानना है कि धरती पे कोई शक्ति नहीं है और ना ही कोई भगवान के रूप होते
9. विज्ञान के पहलू से
अब अगर हम विज्ञान के पहलू से बात करे तो आपके बता दे कि विज्ञान ने जीवन और ब्रह्माण्ड के ऐसे बहुत सारे पहलुओं को सुलझाया है,फिर भी ऐसे भी बहुत सारे प्रश्न है जिनका जवाब विज्ञान भी देने में असमर्थ रहा है। जैसे कि ब्रह्माण्ड का आरंभ कैसे हुआ? लोग का जन्म होता है तो वो कहा से आते हैं।
मरने के बाद कहा जाते है। हमारे शरीर के अंदर जो भी गतिविधि हो रही है वो आपने आप ही संचालित कैसे हो रही है |स्टीफन हॉकिंग, एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक, ने भी ब्रह्मांड के नियमों की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान के अस्तित्व की आवश्यकता नहीं है क्योंकि भौतिकी के नियम स्वयं ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति की व्याख्या कर सकते हैं। लेकिन दूसरी ओर, अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि वह 'महान वास्तुकार' में विश्वास करते हैं, जिसका अर्थ था कि वे किसी उच्च शक्ति के अस्तित्व को मानते थे, जो इस ब्रह्मांड को नियंत्रित करती है।
10. व्यक्तिगत अनुभव और विश्वास
भगवान के अस्तित्व को लेकर लोगों के व्यक्तिगत अनुभव और विश्वास भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई लोग अपने जीवन में कुछ घटनाओं को भगवान के हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
जब हम किसी कठिन परिस्थिति में होते हैं और अचानक से कोई चमत्कार होता है, तो हम इसे भगवान की कृपा मानते हैं। इसी प्रकार, कई लोग अपने सुख-दुख, सफलताओं-असफलताओं को भगवान की इच्छा मानते हैं।
धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, ध्यान और साधना के माध्यम से कई लोग भगवान के करीब महसूस करते हैं। वे मानते हैं कि जब हम भगवान के प्रति श्रद्धा और आस्था रखते हैं, तो वे हमारी मदद के लिए आते हैं। यह विश्वास उन्हें मानसिक शांति और संतोष प्रदान करता है।
वैसे अब निस्कर्ष के आधार पे आपको बताएं तो यह सवाल हर एक व्यक्ति के आधार पे अपनी आस्था, विश्वास और दृष्टिकोण पे पूरा पूरा निर्भर करता है है की वो भगवान को माने या ना माने। कुछ लोग अपना सारा जीवन भगवान के समर्पित कर के जीते है। अपने दुखो का निवारण भगवान से ही प्राप्त करते है। और वही दूसरी तरफ एक ऐसे समुदाय के लोग जो बिना भगवान को मानते हुए भी अपना जीवन को अर्थपूर्ण और नैतिक तरीके से जीते है।






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